Monday, May 10, 2010

वो शिकार लड़की

वो काली यादें
परछाई जैसी
मेरे क़दमों से चिपटी हुई हैं
दिन भर मेरे साथ साथ
चलती हैं
चाहे जहाँ भी जाऊं
मेरे हर कदम के साथ
उठती हैं गिरती हैं
और साथ ही
उठता गिरता है
आँसुओं का तूफ़ान
मेरे भीतर
और रात के अँधेरे में
वो चालाक परछाईयाँ
काले अँधेरे के साथ
घुल मिल कर
ढांप लेती हैं मुझे
ताकि चूस सकें
मेरा बचा खुचा
अल्हड़पन और बचपन

क्या माँगा..

मैंने आखिर क्या माँगा
एक टुकड़ा चाँद का
मुट्ठी भर आसमान
सूरज की कुछ किरणें
चंद बूँदें बारिश की
एक प्याला गर्म चाय
चंद लम्हे फुर्सत के
थोड़ी सी मासूम हँसी
खुशियों के कुछ आँसू
माँ के आँचल का एक छोर
थोड़ी खुशियाँ हर ओर
कुछ बचपन की शरारतें
और माँगा थोडा सा
निश्छल स्नेह
बस यही तो...

Thursday, March 25, 2010

मेरे मन

मेरे मन
न आ तू करीब मेरे
रहने दे यूँ ही अकेला
कुछ देर
जूझने दे मुझे खुद से
इस सन्नाटे के जाल में फंसकर
तड़पने दे मुझे
ये अँधेरा ये अकेलापन
ये ख़ामोशियों का भँवर
लीलने दे इसे मुझे
और समा जाने दे मुझे इसमें
नहीं बिखरुंगी भरोसा रख
इस खोखलेपन में समाकर
खुद को होम कर
इस तपन में जलकर ही
जन्म होगा एक नयी "मैं" का
जिसके होठों पर
झूठी मुस्कराहट नहीं होगी
मुखोटा नहीं होगा
होगा तो सिर्फ स्नेह
भरोसा और आत्मसमर्पण
और मेरे मन
तब तेरे घाव भी भर चुके होंगे

Thursday, February 11, 2010

धरती

मन की गीली रेत पर

ये जो कदमों के निशान छोड़े हैं तुमने

जाते जाते उन्हें तो साथ लेते जाओ

मेरी यादों की हर लहर

उन्हें और पक्का ही करेगी

कभी मिटा न सकेगी

और उस निशान में मेरा समर्पण

झाग कि तरह बैठ जाएगा

हमेशा हमेशा के लिए

और रह जाउंगी मैं

अपने साथ लिए

एक खारापन और सपनों की तलछट

पर मेरा मन

किसी के अधूरे स्नेह का प्यासा नहीं

जियूंगी मैं

इस खारेपन को समेटकर

और अपने भीतर पलती

हर कल्पना को इतनी शक्ति दूंगी

कि वो चाँद को भी छू सकें

देखना एक दिन

लकीरें

मेरे हाथों में
ये चन्द जो लकीरें हैं
मानो न मानो
पर ये
मेरी तुम्हारी
मिली जुली तकदीरें हैं
वो आधा हिस्सा
जो पूरा करे ये किस्सा
तुमने चुरा लिया था
आधा छूटा मेरे पास
ढूँढ रही हूँ अब तक
कहाँ हो
चले आओ, चले आओ....

Wednesday, January 20, 2010

कच्चे सपने

पड़ोस के कुम्हार के
चाक पर रखी मिट्टी
और उससे बने बर्तनों से
कच्चे मेरे सपने
जो चले थे
दुनिया से लड़ने
सारी मुसीबतों को झेलकर
आग में तपकर
पक्का होने
ताकि वो तुम्हें शीतल कर सकें
ठेस लगी एक
और पल में टूट गए

Monday, January 11, 2010

जब ऐसा हो..

साँसों कि ताल पर

जब गीत डगमगाने लगें

पलकों की कोर पर

जब सपने भीगे आने लगें

शब्दों की भीड़ में

जब सुर खोखले आने लगें

जीवन की सेज पर

जब हाथ कांटे सजाने लगें

तो समझना

मेरे दिल का एक कोना

तुम्हारे लिए मर गया