वो काली यादें
परछाई जैसी
मेरे क़दमों से चिपटी हुई हैं
दिन भर मेरे साथ साथ
चलती हैं
चाहे जहाँ भी जाऊं
मेरे हर कदम के साथ
उठती हैं गिरती हैं
और साथ ही
उठता गिरता है
आँसुओं का तूफ़ान
मेरे भीतर
और रात के अँधेरे में
वो चालाक परछाईयाँ
काले अँधेरे के साथ
घुल मिल कर
ढांप लेती हैं मुझे
ताकि चूस सकें
मेरा बचा खुचा
अल्हड़पन और बचपन
kuchh aansuu....sukhe se
Monday, May 10, 2010
क्या माँगा..
मैंने आखिर क्या माँगा
एक टुकड़ा चाँद का
मुट्ठी भर आसमान
सूरज की कुछ किरणें
चंद बूँदें बारिश की
एक प्याला गर्म चाय
चंद लम्हे फुर्सत के
थोड़ी सी मासूम हँसी
खुशियों के कुछ आँसू
माँ के आँचल का एक छोर
थोड़ी खुशियाँ हर ओर
कुछ बचपन की शरारतें
और माँगा थोडा सा
निश्छल स्नेह
बस यही तो...
एक टुकड़ा चाँद का
मुट्ठी भर आसमान
सूरज की कुछ किरणें
चंद बूँदें बारिश की
एक प्याला गर्म चाय
चंद लम्हे फुर्सत के
थोड़ी सी मासूम हँसी
खुशियों के कुछ आँसू
माँ के आँचल का एक छोर
थोड़ी खुशियाँ हर ओर
कुछ बचपन की शरारतें
और माँगा थोडा सा
निश्छल स्नेह
बस यही तो...
Thursday, March 25, 2010
मेरे मन
मेरे मन
न आ तू करीब मेरे
रहने दे यूँ ही अकेला
कुछ देर
जूझने दे मुझे खुद से
इस सन्नाटे के जाल में फंसकर
तड़पने दे मुझे
ये अँधेरा ये अकेलापन
ये ख़ामोशियों का भँवर
लीलने दे इसे मुझे
और समा जाने दे मुझे इसमें
नहीं बिखरुंगी भरोसा रख
इस खोखलेपन में समाकर
खुद को होम कर
इस तपन में जलकर ही
जन्म होगा एक नयी "मैं" का
जिसके होठों पर
झूठी मुस्कराहट नहीं होगी
मुखोटा नहीं होगा
होगा तो सिर्फ स्नेह
भरोसा और आत्मसमर्पण
और मेरे मन
तब तेरे घाव भी भर चुके होंगे
न आ तू करीब मेरे
रहने दे यूँ ही अकेला
कुछ देर
जूझने दे मुझे खुद से
इस सन्नाटे के जाल में फंसकर
तड़पने दे मुझे
ये अँधेरा ये अकेलापन
ये ख़ामोशियों का भँवर
लीलने दे इसे मुझे
और समा जाने दे मुझे इसमें
नहीं बिखरुंगी भरोसा रख
इस खोखलेपन में समाकर
खुद को होम कर
इस तपन में जलकर ही
जन्म होगा एक नयी "मैं" का
जिसके होठों पर
झूठी मुस्कराहट नहीं होगी
मुखोटा नहीं होगा
होगा तो सिर्फ स्नेह
भरोसा और आत्मसमर्पण
और मेरे मन
तब तेरे घाव भी भर चुके होंगे
Thursday, February 11, 2010
धरती
मन की गीली रेत पर
ये जो कदमों के निशान छोड़े हैं तुमने
जाते जाते उन्हें तो साथ लेते जाओ
मेरी यादों की हर लहर
उन्हें और पक्का ही करेगी
कभी मिटा न सकेगी
और उस निशान में मेरा समर्पण
झाग कि तरह बैठ जाएगा
हमेशा हमेशा के लिए
और रह जाउंगी मैं
अपने साथ लिए
एक खारापन और सपनों की तलछट
पर मेरा मन
किसी के अधूरे स्नेह का प्यासा नहीं
जियूंगी मैं
इस खारेपन को समेटकर
और अपने भीतर पलती
हर कल्पना को इतनी शक्ति दूंगी
कि वो चाँद को भी छू सकें
देखना एक दिन
लकीरें
मेरे हाथों में
ये चन्द जो लकीरें हैं
मानो न मानो
पर ये
मेरी तुम्हारी
मिली जुली तकदीरें हैं
वो आधा हिस्सा
जो पूरा करे ये किस्सा
तुमने चुरा लिया था
आधा छूटा मेरे पास
ढूँढ रही हूँ अब तक
कहाँ हो
चले आओ, चले आओ....
ये चन्द जो लकीरें हैं
मानो न मानो
पर ये
मेरी तुम्हारी
मिली जुली तकदीरें हैं
वो आधा हिस्सा
जो पूरा करे ये किस्सा
तुमने चुरा लिया था
आधा छूटा मेरे पास
ढूँढ रही हूँ अब तक
कहाँ हो
चले आओ, चले आओ....
Wednesday, January 20, 2010
कच्चे सपने
पड़ोस के कुम्हार के
चाक पर रखी मिट्टी
और उससे बने बर्तनों से
कच्चे मेरे सपने
जो चले थे
दुनिया से लड़ने
सारी मुसीबतों को झेलकर
आग में तपकर
पक्का होने
ताकि वो तुम्हें शीतल कर सकें
ठेस लगी एक
और पल में टूट गए
चाक पर रखी मिट्टी
और उससे बने बर्तनों से
कच्चे मेरे सपने
जो चले थे
दुनिया से लड़ने
सारी मुसीबतों को झेलकर
आग में तपकर
पक्का होने
ताकि वो तुम्हें शीतल कर सकें
ठेस लगी एक
और पल में टूट गए
Monday, January 11, 2010
जब ऐसा हो..
साँसों कि ताल पर
जब गीत डगमगाने लगें
पलकों की कोर पर
जब सपने भीगे आने लगें
शब्दों की भीड़ में
जब सुर खोखले आने लगें
जीवन की सेज पर
जब हाथ कांटे सजाने लगें
तो समझना
मेरे दिल का एक कोना
तुम्हारे लिए मर गया
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